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जिम्नोस्पर्म का वर्णन करें


जिम्नोस्पर्म ऐसे पौधे होते हैं जिनमें बीजांड किसी भी अंडाशय भीत्ति से घिरे नहीं होते हैं और निषेचन से पहले और बाद में भी अनावृत रहते हैं। जिम्नोस्पर्म शब्द में जिम्नोस का अर्थ है अनावृत और स्पर्म का अर्थ है बीज। निषेचन के पूर्ब तथा बाद में भी अनावृत ही रहते हैं। जिम्नोस्पर्म में मध्यम / लम्बे पेड़ और झाड़ियाँ शामिल हैं। जिम्नोस्पर्म का सिकुाआ वृक्ष सबसे लंबा है।

मूल (Roots)

मूल आमतौर पर मूसला मूल होती हैं। इसके कुछ जीनस की मूल कवक से सहयोग कर लेती है, जिसे कवक मूल कहते है। जबकि कुछ अन्य (साइकैस) छोटी विशेष जड़ें नाइट्रोजन स्थिर करने वाले सायनो बैक्टीरिया के साथ सहयोग कर लेती है जिसे प्रवाल मूल (कोरलॉइड रूट) कहा जाता है। इसके तने अशाखित (साइकैस) या शाखित (पाइनस, सीड्स ) होते हैं।

पत्ते (Leaves)

इसकी पत्तियां सरल या संयुक्त हो सकती हैं। साइकैस में पिच्छाकार पत्तियाँ कुछ वर्षों तक बनी रहती हैं। जिम्नोस्पर्म में पत्तियां अत्यधिक तापमान, आर्द्रता और हवा का सामना करने के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित होती हैं। शंक्वाकार (कोनिफर्स) में सुई जैसी पत्तियां होती है।इसका सतही क्षेत्रफल कम, इनका मोटी क्युटिकल तथा गर्तिकरंध्र होते हैं।

बीजाणु (Spores)

जिम्नोस्पर्म विषम बीजाणु होते हैं वे अगुणित लघुबीजाणु और वृहद बीजाणु उत्पन्न करते हैं।

बीजाणुधानी (स्पोरैंगिया) में दो प्रकार के बीजाणु उत्पन्न होते हैं जो बीजाणुपर्ण पर होते हैं। बीजाणुपर्ण एक तने के साथ सर्पिल रूप से व्यवस्थित होते हैं ये शलथ या सघन शंकु बनते हैं। शंकु जिन पर लघुबीजाणुपर्व तथा लघुबीजाणुधानी होती है उन्हें लघुबीजाणुधानिक अथवा नरशंकु कहा जाता है। प्रत्येक लघुबीजाणु से नर युग्मकोद्भिद संतित उत्पन्न होती हैं जो अत्यधिक कम होती हैं और यह कुछ ही कोशिकाओं में सीमित रहती हैं। इस न्यूनीकृत नर युग्मकोद्भिद को परागकण कहा जाता है। परागकणों का विकास लघुबीजाणुधानी (माइक्रोस्पोरैंगिया) में होता है।

शंकु (Cone)

जिन शंकु पर गुरु बीजाणुपर्ण तथा गुरु बीजाणुधानी होती है उन्हे गुरु बीजाणुधानिक अथवा मादा शंकु कहते है। दो प्रकार के नर अथवा मादा शंकु एक ही पेड़ (पाइनस) अथवा वृक्षों(साइकैस) पर स्थित हो सकते हैं।

गुरु बीजाणु मातृ कोशिका बीजांड काय की एक कोशिका से विभेदित हो जाता है। बीजांडकाय एक अस्तर द्वारा संरक्षित है और इस संरचना को बीजांड कहा जाता है। बीजांड मेगास्पोरोफिल पर पैदा होते हैं जिन्हें मादा शंकु बनाने के लिए क्लस्टर किया जा सकता है। गुरु बीजाणु मातृ कोशिका में मिआँसिस द्वारा चार गुरु बीजाणु बन जाते है। गुरु बीजाणुधानी (बीजांडकाय) स्थित अकेला गुरुबीजाणु मादा युग्मकोद्भिद में विकसित होता है। इसमें दो या अधिक स्त्रिधानी अथवा मादा जननं अंग होते है। बहुकोशिकीय मादा युग्मकोद्भिद भी गुरु बीजाणुधानी में ही रह जाता है। जिम्नोस्पर्म में नर और मादा युग्मकोद्भिद, ब्रायोफाइट और टेरिडोफाइट की तरह स्वतंत्र नहीं होते है। वे स्पोरोफाइट पर बीजाणुधानी में ही रहते हैं। बीजाणुधानी से परागकण बाहर निकलते है। वे हवा की धाराओं में बहते हैं और गुरु बीजाणुपर्ण पर स्थित बीजांड के छिद्र के संपर्क में आते हैं। परागकण को ले जाने वाली पराग नली बीजांड में आर्कगोनिया की ओर जाती है और आर्कगोनिया के मुहाने के पास शुक्राणु छोड़ देती है। निषेचन के बाद, युग्मनज एक भ्रूण में और बीजांड बीज में विकसित होता है। इन बीजों को ढका नहीं जाता है।

साइकस

(साइकस)

पाइनस

(पाइनस)

गिंकगो

(गिंकगो)

एंजियोस्पर्म और जिम्नोस्पर्म के बीच अंतर

एंजियोस्पर्म जिम्नोस्पर्म
बीज बीज फूलों के पौधों द्वारा निर्मित होता है और एक अंडाशय के भीतर संलग्न होता है बीज गैर-फूल वाले पौधों द्वारा निर्मित होता है और बिना बंद या नग्न होता है।
जीवनचक्र इन पौधों का जीवनचक्र मौसमी होता है ये पौधे सदाबहार हैं
ऊतक में ट्रिपलोइड ऊतक होता है में अगुणित ऊतक होता है
पत्ते पत्तियाँ आकार में चपटी होती हैं पत्तियाँ स्केल जैसी और सुई के आकार की होती हैं
लकड़ी का प्रकार दृढ़ लकड़ी सॉफ्टवुड
प्रजनन प्रजनन जानवरों पर निर्भर करता है प्रजनन हवा पर निर्भर करता है
प्रजनन प्रणाली फूलों में मौजूद प्रजनन प्रणाली (उभयलिंगी या उभयलिंगी) शंकु में मौजूद प्रजनन प्रणाली और उभयलिंगी होते हैं

एंजियोस्पर्म और जिम्नोस्पर्म के बीच समानताएं

एंजियोस्पर्मजिम्नोस्पर्म
एंजियोस्पर्म में पत्तियों, तनों और जड़ों सहित पौधे के हिस्से होते हैं। जिम्नोस्पर्म के पौधे के हिस्से भी एंजियोस्पर्म के समान होते हैं जिसमें पत्तियां, तना और जड़ें शामिल होती हैं।
एंजियोस्पर्म शब्द ग्रीक शब्द एंजिन से आया है जिसका अर्थ है "केसिंग" और स्पर्म का अर्थ "बीज" है। जिम्नोस्पर्म शब्द ग्रीक शब्द जिमनोस से लिया गया है जिसका अर्थ है "अनावृत" और स्पर्म का अर्थ "बीज" है।
सभी संवहनी पौधों की तरह एंजियोस्पर्म का स्पोरोफाइट-प्रमुख जीवन चक्र होता है। जिम्नोस्पर्म में भी अन्य संवहनी पौधों की तरह एक स्पोरोफाइट-प्रमुख जीवन चक्र होता है।